*मेरी कलम से*
''मेरे फोज़ी भाईयो के लिए''
''आबला-ए-दिल हबाब बनकर न रह जाये,
रूह तेरी 'सहरा-ए-ख़ाक' बनकर न रह जाये,
जला देना अन्जुमन में ही महफ़िले लुटने वालो को,
ज़हन के इन्तकाम बस ख़याल बनकर न रह जाये,''
*महेंद्र कुमार गुर्जर*
('आबला-ए-दिल - दिल का फफोला'
'हबाब - पानी का बुलबुला'
'सहरा-ए-ख़ाक - मरुस्थल की राख')